--- सुदर्शन फ़कीर
ये शीशे ये सपने, ये रिश्ते ये धागे,
किसे क्या खबर है, कहाँ डूब जाये।
मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के,
न जाने ये किस मोड़ पर डूब जाये॥
अजब दिल कि बस्ती, अजब दिल कि वादी,
हर एक मौसम नयी ख्वाहिशों का।
लगाए है हमने भी सपनों के पौधे,
मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का॥
मुरादों कि मंजिल के सपनों में खोये,
मोहब्बत कि राहों में हम चल पड़े थे।
ज़रा दूर चलके जब आँखें खुली तो,
कड़ी धुप में हम अकेले खड़े थे॥
जिन्हें दिल से चाहा, जिन्हें दिल से पूजा,
नज़र आ रहे है वही अजनबी से।
रवायत शायद ये सदियों पुरानी,
शिक़ायत नही है कोई ज़िंदगी से॥
मंगलवार, 27 नवंबर 2007
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1 टिप्पणी:
आपका प्रयास सराहनीय है.
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