शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2008

महान समाजसेवक बाबा आमटे नही रहे

जाने-माने समाजसेवक और मँगसेसे पुरस्कार विजेता मुरलीधर देविदास आमटे उर्फ़ "बाबा आमटे" का उनके चंद्रपुर स्थित आनंदवन आश्रम में शनिवार सुबह ४.१५ बजे निधन हो गया. वे ९४ वर्ष के थे.
भारत के सबसे सम्मानीय समज्सेवकों में से एक, बाबा आमटे ने अपना पूरा जीवन कुष्ठ्रोग से पिडीत लोगों की सेवा और पुनर्वास में बिता दिया. जिन लोगों को उन्होंने इस रोग से मुक्ति दिलाई, उनके लिए बाबा आमटे भगवन से कम नही रहे.

बाबा आमटे ने १९८५ में कन्याकुमारी से कश्मीर तक "भारत जोडो" आन्दोलन शुरू किया था. ये आन्दोलन उन्होंने फिर १९८८ में गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक चलाया. १९९० में बाबा आनंदवन छोड़ नर्मदा के किनारे जा बसे ताकि उन लोगों का पुनर्वास कर सके जो बाँध के निर्माण की वज़ह से बेघर हो गए थे. हाल ही में अपनी बिगड़ती सेहत के चलते, बाबा आनंदवन लौटे थे.

बाबा आमटे का जन्म २६ दिसम्बर १९१४ को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में हुआ. वकालत की शिक्षा पुरी करने के बाद बाबा आमटे अंग्रेजो के ख़िलाफ़ स्वतन्त्रता संग्राम में शामिल हो गए. उन्होंने महात्मा गाँधी के साथ उनके सेवाग्राम के आश्रम में वक्त बिताया. बापू ने उन्हें "अभय-साधक" की उपलब्धि दी थी. विनोबा भावे, रविंद्रनाथ तागोरे और साने गुरूजी से बाबा आमटे बहुत प्रभावित थे.

बाबा आमटे के अनगिनत प्रशंसकों में से एक, दलाई लामा, ने एक बार कहा था की बाबा आमटे के तरीके से काम करने से ही इस देश का सही विकास हो सकता है.

यू.एन. मानवाधिकार पुरस्कार, मँगसेसे पुरस्कार, टेमपलट्न पुरस्कार और गाँधी शान्ति पुरस्कार ऐसे कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से बाबा आमटे को सम्मानित किया गया है.

गरीब और पिडीत लोगों की सेवा के लिए बाबा आमटे हमेशा याद किए जायेंगे.

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2008

नखरे सानिया मिर्जा के!


हम भारतवासियों को शायद विवादों के साथ जीने की आदत सी पड गई है. हम लोग, विशेषकर मीडिया, तुच्छ से तुच्छ घटनाओं को भी भरपूर अहमियत देकर उन्हें विवादों की श्रेणी में लाकर रख देते है. गुडगाँव का किडनी काण्ड और महाराष्ट्र में राज ठाकरे की गुंडागर्दी के ताज़ा उदाहरण देखने के बाद, इस देश को अब एक नए विवाद ने जकड लिया है. "सानिया मिर्जा घरेलु मैच नही खेलेगी".

सानिया का कहना है की उन्हें हर बार विवादों में घसीटा जाता है और इसीलिए वो अब हिंदुस्तान में नही खेलेगी. भाई ये तो हद्द हो गई. पहले तो आप देश के झंडे का अपमान करोगे, और फिर आपके ख़िलाफ़ अगर केस दर्ज किया जाए तो आप रूठ जाओगे. कहोगे हमें नही खेलना. ये ख़बर सुनकर जैसे हमारे आंसूं नही रुक रहे है.

अरे भाई, अगर उसे अपने देश में नही खेलना है तो आप क्यों परेशां होते है. कोई पहाड़ तो नही टूट जाएगा उसके नही खेलने से. इक्कीस साल की एक नासमझ लड़की एक दिन अचानक एशिया की टॉप टेनिस खिलाड़ी बन जाती है, और अगले ही दिन स्वदेश में नही खेलने की धमकी देती, और हम लोग उसे सहानुभूति देने में लग जाते है.

ज़ाहिर है ये फैसला सानिया मिर्जा का ख़ुद का फ़ैसला नही है. उसे इतनी समझ ही नही है की वो ऐसा फ़ैसला कर सके. लेकिन हम लोगों में तो थोडी समझ होनी चाहिए. पी टी उषा और अंजू बोबी जॉर्ज बेशक बहुत अच्छी खिलाड़ी रहे है, लेकिन बहुत सुंदर नही होने की वजेह से उन्हें ज्यादा लोकप्रियता नही मिली. लेकिन सानिया के रूप में सामान बेचने वाली कई कंपनियों को एक विक्रेता मिल गया है. सानिया को स्टार बनाने में ये लोग ही जिम्मेदार है. सानिया ने आज तक कोई अंतराष्ट्रीय खिताब नही जीता है जिस से वो स्टार बन सकती थी. उसे तो मीडिया ने स्टार बनाया है. और उसकी इस खोखली प्रतिभा में चार चाँद लगाने के लिए हमारी सरकार ने उसे कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित भी कर डाला. ऐसे सम्मान जिसका मतलब भी इस लड़की को पता नही होगा. ऐसे सम्मान जो इसके पहले जिन्हें दिए गए है, उन्होंने खेलकूद से नही बल्कि परिश्रम और त्याग करके इस देश के विकास में योगदान किया है.

सानिया मिर्जा के खेलने से किसी भूखे को खाना नही मिलता. सानिया के खेलने से किसी नंगे को कपडा नही मिलता. सानिया के खेलने से किसी बेघर को मकान नही मिलता. तो फिर उसके नही खेलने से क्या फर्क पड़ने वाला है? कोई नुकसान नही है. नही खेलने की धमकी देना मतलब सानिया मिर्जा ने पूरे देश का अपमान करने जैसा है. अगर वो देश में खेलना नही चाहती, तो हम लोगों ने भी उसके विदेशों के मैच नही देखने चाहिए. सरकार का ये फ़र्ज़ बनता है की सानिया मिर्जा को दिए गए सारे पुरस्कार वापस लिए जाए.

इस बच्ची को ग़लत राह दिखाने वाले भी बेवकूफ नज़र आते है. सानिया के सहयोगी महेश भूपति ने सानिया के इस फैसले को सही ठहराया है. भूपति कहते है, "हर किसी का सोचने का अपना तरीका होता है. सानिया का फैसला कुछ लोगों को पसंद आया है और कुछ लोगों को नही आया. लेकिन वो अपने फैसले पर अडी रहेगी. इससे उसे आने वाले दिनों में लाभ होगा."अब क्या लाभ होगा ये तो भूपति ही जानते है.

लेकिन भारत के टेनिस कप्तान लिएंडर पेस ने सानिया के फैसले को बिल्कुल ग़लत बताया है. पेस कहते है, "ऐसा एक बड़ा इंसान बताओ जो विवादों से नही घिरा होता. ये तो आप-पर निर्भर करता है की आप उसे कितनी अच्छी तरह से संभाल पाते हो. एक खिलाडी की सबसे बढ़ी खुशी यही होनी चाहिए की वो अपने देश में और देश के लोगों के सामने खेलता है. कोई भी खिलाडी, खेल या देश से बढ़कर नही हो सकता."

बिल्कुल सही कहा लिएंडर पेस ने. सानिया जी, आपको आराम की ज़रूरत है. उम्मीद करता हूँ आप जल्दी थिक हो जायेगी!